रविवार, 18 नवंबर 2007

साहित्य- यत्र तत्र सर्वत्र

साहित्य अगर सिर्फ़ शब्द होता तो शायद पन्नो कि कैद से अजाद न हो पाता। साहित्य अगर सिर्फ़ कविता होता तो रात्रि के आकाश ,स्त्री मन की आस , और नदी की प्यास मे ही खोया रहता. साहित्य अगर केवल बिम्ब होता तो तो कितनी आवाजे खामोशी की चादर मे सिमट्कर रह जाती. सहित्य तो सब कुछ है... साहित्य तो हर जगह है ..यत्र तत्र सवत्र... पहली साहित्यिक रचना क्या रही होगी इसका अनुमान नही लगाया जा सकता. सबसे पहला साहित्य्कार कौन रहा होगा.इस प्रश्न क उत्तर भी मुश्किल है. मनुश्य प्रक्रति कि विशिष्ट रचना है. और मनुष्य की हर भाव भन्गिमा गतिविधि साहित्य है. हमारी ऐतिहसिक धरोहरे इन दोनो का सन्ग्रह ही तो है. साहित्य ने हमारे लोक गीतो से बोलना सीखा. न्रत्य की मुद्राओ मे ढला मौन अभिव्यक्ति का माध्यम बना. जब भाषा का आविष्कार हुआ तो गीत और कहानी बना. समय बदला युग बदले साहित्य की परिधि बढ्ती रही. आज साहित्य के दायरे से कुछ भी अछूता नही है. मेरी कोशिश है साहित्य का एक कोना पकड्ने की .

कोई टिप्पणी नहीं: