मंगलवार, 20 नवंबर 2007

प्रश्न और प्रतिउत्तर

हां मुश्किल है
स्वयं के फ़ैसले पर हर बार विश्वास कि मुहर लगाना
हर बार सही साबित होना
ऐसा हो नही सोचता मै
फ़िर क्या इस बार
तुम्हारा फ़ैसला कर लू स्वीकार
ढक जाने दू अनिश्चय को अपने
तुम्हारे दिखाये भविष्य की छांव में
लेकिन वर्तमान के लिये नही कुछ कहते तुम क्यु
करू मै क्या
रास्ते के बीच मे हू
क्या छोड़ दू इससे आगे का ख्याल
अगर हां
तो जो दूरी तय की
जिस सफ़र को साथ ले आया हू यहा तक
उसे कहां छोडूं,
कैसे छिपाऊ
इन सबके साथ तुम्हाए फ़ैसले को
क्या सच मे स्वीकार कर सकूगा मैं
प्रतिउत्तर नही करूगा
लेकिन
पहले मेरे प्रश्नों क उत्तर दो

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