अभी तो खाली हू...
अभी तो प्यासा हू...
अभी तो अधूरा हू...
अभी मै हू ही नही...
निर्माण के प्रथम चरण कि इमारत सा...
हर रोज आकार मे थोडा और उभरता जाता हू...
वक़्त आने पर द्वार पर रंगोली सजेगी...
कुमकुम मे रंगी दस उन्गालियोँ कि छाप दीवारों पर चढेगी ...
जब तुम्हारे हाथ मे टिकेगा एक दोना...
और मुह मे घुलेगी मिठास...
तब समझना हो गया हू मैं पुरा...
अभी मैं बन रहा हू ....
अभी मैं हू अधूरा।
1 टिप्पणी:
आप अच्छा लिख रहे हैं हेमन्त भाई,सारी कविताएं व टिप्प्णियां पढ गया मैं, बहुत अच्छा
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