सोमवार, 19 नवंबर 2007

कविता विश्वास किया मैने तुम पर.

प्रारंभ कर रहा हू कविता तुमको
जोड गांठ कर शब्दो को
एक विश्वास समेटकर मन मे
तुम मेरे मौन को व्यक्त कर पाओगी
जब कभी नजरे ठहर कर झुक जायेगी
आती जाती सांसो मे मन के भाव
नवजात उम्मीदे बह जायेगी
तुम थामोगी शब्दो का प्रवाह
पिरोओगी उन्की लडी
अनकहा सब कह पाओगी
कविता मेरा मौन बोझ है मुझ पर
दबता जा रहा हू हर पल हर दिन
सह रहा हू कब से पीड़
शब्दो कि रह गये जो भीतर
विश्वास कर रहा हू
तुम हरोगी सब
एक नया जीवन दे पाओगी

1 टिप्पणी:

Asha Joglekar ने कहा…

आपकी कविता ले आपके मौन को मुखर कर दिया।
सुंदर ।